12 मार्च 2009

ऐसा मेरा देश निराला

सुबह सुबह मन्दिर की घंटी,

खेतों में बैलों की हलचल ,

पनघट पर गीतों की माला,

ऐसा मेरा देश निराला,

जीवन की बगिया में यहाँ पर,

सब मिलकर है प्रीत जोड़ते ,

सबका का मन गंगा सा निर्मल,

कोई न मिलेगा मन का काला,

ऐसा मेरा देश निराला,

पावन है यहाँ प्रेम बहन का,

पावन माँ की ममता प्यारी,

पावन है संतों की माला,

ऐसा मेरा देश निराला,

रामगोपाल जाट "कसुम्बी"





10 मार्च 2009

स्वामी रामदेव - एक युग पुरूष


देश भक्त स्वामी रामदेव
सबसे पहले तो होली के शुभ अवसर पर आप सभी को मेरी और से होली की हार्दिक शुभकामनाये,
स्वामी रामदेव जो आज हमारे देश में योग का पर्याय बन गए है भारत माता के सच्चे सपूत है
भारत माता के शहीदों की आत्माएं जब भी इस देश का चिंतन करती होगी तो स्वामी रामदेव को देख व् सुनकर वो भी गर्व महसूस करती होगी की मेरी भारत माता ने ऐसा सपूत भी जाया है जो भारत को जगाने का माद्दा रखता है
आज स्वामी जी ने जयपुर में जो प्रवचन दिया आज देश की जो हालत है उसको शीशे मे उतार दिया सो करोड़ का देश कुछ स्वार्थी लोगो के कारण पुरे जहान में बदनाम है , राजनीति धंधा बन गई है अपने स्वार्थ के लिए लोग भोली जनता को छल कर कुर्सी पा लेते है और पाँच साल तक उनकी सुध लेना तो दूर दर्शन भी नही देते जब मिलने जाते है तो जबाब आता है साहब पूजा कर रहे है ,
स्विश बैंकों के खाते इनकी काली कमाई से भरे पड़े है , जो लोग हमे कुत्ता कहकर ओस्कर देते ही उसपर खुशियाँ मनाई जाती है , संतो का देश , विश्व ललाट पर आभा के सामान चमकने वाला देश आज इन स्वार्थी तत्वों के कारन कितना लाचार व लचर हो गया है क्या इस दिन को देखने के लिए ही सुभाष , भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , रामप्रसाद बिस्मिल , ने कुर्बानियां दी थी ,
हमारे पास दुनिया का सबकुछ सबसे ज्यादा ही , खनिज , कच्चा मॉल , सबकुछ सबसे ज्यादा है , हमारा ज्ञान सबसे प्राचीन व सबसे उत्तम है ,
स्वामी विवेकानंद ने कहा था "उठो जागो और लक्ष्य की और चल दो "
आज फ़िर से हमे स्वामी रामदेव जैसे कर्मयोगी संतो की दिखाई राहों पर चलना है , क्यों की हमे अपनी वास्तविक आजादी प्राप्त करनी है , हमे फ़िर से विश्व का गुरु बनना है ,
स्वामी जी को सादर साधुवाद ,
रामगोपाल जाट

09 मार्च 2009

मां


माँ
मेरे रोने से ,
उसके नयनों का झरना बहता था ,
मेरे ठुमकने से ,
उसका जी प्रसन्न ,
आत्मविभोर रहता था ,
जीवन में मेरी उदासी से,
उसका मन चिर- चिंतित रहता था,
क्यों की वह मां थी ,
मेरे जीवन के निर्माण और परिमाण ,
सबकी धात्री थी वह,
मेरे सुख और दुःख मे साथ देने वाली,
सहयात्री थी वह,
भगवान् को भूल गुनाह नही करूंगा,
पर उसे भूल,
मैं जीवन का गुनहगार बन जाऊंगा,
मैं उसका 'सूरज-चंदा' ,
उसके 'दिल का टुकडा',
उसे भूल उसका लाल नही,
मक्कार बन जाऊंगा,
प्रेम, त्याग, वात्सल्य, ममता सबकी,
पराकाष्ठा थी मां ,
केवल मेरी ही नही,
भगवान् की भी आस्था थी मां ,
हर असुरक्षा के अंदेशे पर ढाल बन गई थी,
मेरी हर विपदा संघर्ष की पतवार बन गई थी ,
उसके चरणों की रज पीकर,
मैंने गंगा जल पीना छोड़ दिया,
उसके आंसू,
जो मुझ पर अमृत बन गिरे,
मैंने अमर होने के लिए,
और कुछ पीना छोड़ दिया,
----- मां को समर्पित
रामगोपाल जाट

08 मार्च 2009

साचे बैन

जरा सोचिये
अगर हम सुखी रहना चाहते हैं तो हमें अपना फोकस, अपना ध्यान "मेरा मेरा" नहीं करना चाहिये। कयोंकि ऐसा करने से शान्ति चली जाती है। लेकिन आज के युग में हम अपना मतलब नहीं देखेंगे तो भी हो सकता है हमारी आरथिक बैलगाड़ी लड़खड़ा जाएगी। पैसा सुख न भी ला पाए तो पैसे की कमी दुख ला ही सकती है। ये समाज ऐसा बन गया है़। चारों तरफ कलेष फैल गया है। उसके पीछे लालच। उसके पीछे असुरक्षा। उसके पीछे सुख दुख के कारिकारण को न समझ पाना। उसके पीछे बुद्धि का कुन्द होना। उसके पीछे मन को अशुभ मामलों में रस मिलना। उसके पीछे फूटी किस्मत। उसके पीछे विपरीत परिस्थिती। उसके पीछे अशूभ कर्म। उसके पीछे कुबुद्धि। उसके पीछे मन को अशुभ मामलों में रस मिलना। वगैरह।जल ० डिग्री पर जमता है, १०० पर उबलता है। वो उसकी प्रकृति है। वो उससे बँधा है। उसे चाइस यानी चनने का अधिका नहीं है। मानव को है। अगर मानव, मानव समाज दुखी है, कलेषित है, कलह में है, तो जाहिर है कि उसका बरताव ठीक नहीं है। सर्वत्व उसे कह रहा है कि वो गलत रास्ते पर है। तो सही रास्ता क्या है?कौनसा ऐसा बरताव है, ऐसे कर्म हैं जो मानव की सच्ची प्रकृति हैं?जिस बरताव से लंबे समय तक शांति और सुख मिले। कौनसा ऐसा तरीका है जीने का जिससे प्यास बुझे। मन में जोत जगे। मन में तेज आए। मन दूसरे का सुख छीनने में नहीं लगे। शक तनाव है। शक दीवार है। शक सिकुड़ना है। शक छोटा दिल है। शक बेचैनी है। शक दुख है।कहीं पढा कि अमरीका में सबसे दुखी पेशा वकील हैं। वकील का पेशा शक का है। वो किसी पे भरोसा नहीं करता।सबसे बड़ा धन बुद्ध ने मैत्री कहा है। जहाँ मैत्री होगी वहाँ समाज सुखी होगा, लोग एक दूसरे पर भरोसा करेंगे। भरोसा चैन है। भरिसा शान्ति है। भरोसा खुशी है। करूणा से मन शान्त होगा। करूणा से मन में ऊँचे विचार पकड़ने की ताकत आएगी। करूणा हिरदय को जगायेगी। करूणा हिरदय को निरमल बनाएगी। फिर वो आदमी बदल गया। फिर पुराना खुराफाती नहीं रहा। फिर वो समझ गया।मैत्री और करूणा वो दो पंख हैं जो मानव को दुख सागर से उड़ा ले जाते हैं। मूरख को देवता बनाते हैं। कठोर दिल में फूल खिलाते हैं। योगी को सिद्ध बनाते हैं। मन में शुभ विचार का गढ बनाते हैं। दोस्तों मैत्री और करूणा मानव की सच्ची प्रकृति, सच्चा व्यवहार हैं। क्योंकि जिसके पास ये दो हैं, वो सुखी है, प्रसन्न है, बुद्धिमान है, जगा है। वो सबका भला चाहता है।साची प्रीत हम तुमसों जोरीतुमसों जोर अवर संग तोरी। - श्री गुरु ग्रंथ साहिब

सुधार होगा - कोशिश तो कीजिये

हमारा भारत - जरा झांकिए
यह एक विडंबना ही है कि पिछले 15 वर्षों में जहां हमारी अर्थव्यवस्था ने नयी नयी ऊंचाईयों को छुआ है वहीं इस अवधि में कृषि क्षेत्र लु्ड़कता चला गया। यह क्षेत्र इतनी बुरी तरह पिछड़ा कि इस वर्ष हमें रिकार्ड 60 लाख टन गैहूं आयात करना पड़ेगा। हमें बहुत जल्द जाग जाना होगा। कृषी क्षेत्र में सुधारों की तत्काल जरुरत है जिसमें भूमी सुधार, सिंचाई, किसानों को नयी तकनीक की जानकारी तथा ऋण शामिल है। इस पर तुरंत ध्यान न दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। साठ प्रतिशत आबादी जो कि कृषि पर आधारित है का हिस्सा अर्थ्व्यवस्था में लगातार घटता चला जा रहा है जिससे देश में अमीरी और गरीबी में दूरी बढ़्ती चली जा रही है क्योंकि सेवा क्षेत्र में हो रहे तेज विकास के कारण मध्य वर्ग बहुत तेजी से विकास कर रहा है। यह सच है कि आर्थिक सुधारों ने लाखों पढ़े लिखे भारतीयों को लाभ पहुंचाया है मगर अभी भी बहुत बड़े वर्ग तक इसका असर नहीं पहुंचा है। साफ पानी, स्वास्थ्य सुविधाएं तथा शिक्षा इनके लिये सपना ही है। कुछ उदाहरण देखिये:
प्राईमरी स्कूलों के केवल 25% टीचर ही ग्रेजुएट है।
केवल 28 % स्कूलों में बिजली है तथा आधे से ज्यादा स्कूलों में दो से ज्यादा टीचर या दो से ज्यादा क्लासरूम नहीं हैं।
56% ग्रामीण घरों में बिजली नहीं है।
1,20,000 गांवों को अभी बिजली का बल्ब देखना बाकी है।
उड़ीसा के 80% गांवों में बिजली नहीं है।देश में टीबी, एच आई वी मरीज तो बढ़ ही रहे हैं, कुपोषन के शिकार बच्चे तथा महिलायें भी बढ़ रही हैं।
केवल 38% हेल्थ सेंटरों के पास ही पूरा स्टाफ है तथा केवल 31% के पास इलाज के लिये जरूरी सामान।पीने का पानी एक चौथाई ग्रामीणों की पहुंच से बाहर है।
मुम्बई की 54 % आबादी स्लम में रह्ती है।
एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी में जहां सूरज की रोशनी नहीं जाती क्योंकि घर एक दूसरे के इतने नजदीक बने है, जिसकी गलियों से आप बिना बांहों को सिकोड़े निकल नहीं सकते, जहां एक टायलेट को औसतन 1440 लोग इस्तेमाल करते हैं ऐसी जगह पर 10 X 10 की झोपड़ी का किराया 1500 रु महीना है।
फिर भी लोग गांवों को छोड़ छोड़ कर शहरों को पलायन कर रहे हैं और इन स्लम्स पर और दबाव बना रहे हैं।
अब बताइये गरीब क्या करे? उन गांवों मे रहे जहां न रोजगार है, न बिजली है, न पानी है, न शिक्षा और न स्वास्थ्य या शाहरों में आकर इन स्लम्स में रहे?
चीन ने जब आर्थिक सुधार शुरु किये उससे पहले अपने हर नागरीक को रोटी कपड़ा और मकान दिया। हम जो शहरों में कमा रहे हैं उससे शहर भी नहीं सुधार पा रहे, गांवों की तो बात ही क्या।

झांक कर देखिये- हर कोई डूबा है भ्रष्टाचार मे

सरकारी खजाने से निकला एक रुपए का सिक्का घिसता-घिसता जब किसी गरीब की हथेली तक पहुंचता है तो वह पंद्रह पैसे रह जाता है- लेकिन इसे भ्रष्टाचार के सरकारी आंकड़े की तरह देखने की जगह गरीब आदमी के साथ की जा रही ऐसी नाइंसाफी की तरह देखना चाहिए जो पहले उसका सम्मान लेती है फिर उसकी जान लेती है। सिर्फ सरकारी सिक्का ही आदमी तक आते-आते नहीं घिसता है, गरीब आदमी भी सरकार तक पहुंचते-पहुंचते घिस जाता है, उसकी औकात पंद्रह पैसे भर की भी नहीं रह जाती। रोजगार गारंटी योजना लागू हुई तो वो भ्रष्टाचार की गारंटी में बदल गई। गरीब आदमी के लिए सस्ता अनाज मुहैया कराने की सरकारी योजना को घपले के घुन पहले से खाते रहे हैं। दरअसल अब ऐसा लगने लगा है कि सरकार जब गरीब आदमी का नाम लेती है तो अफसरों और बाबुओं की बांछें खिल जाती हैं। वो जान जाते हैं कि उनके सामने एक ऐसा शिकार है जिसकी चीख दिल्ली में बैठे लोग नहीं सुनेंगे, सुनेंगे भी तो उसकी परवाह नहीं करेंगे। अगर हम वाकई किसी योजना को लेकर ईमानदार हैं, वाकई चाहते हैं कि इस देश के गरीब आदमी का भला हो तो नई योजना बनाने से पहले पुरानी अफसरशाही बदलनी होगी। जब पंचायती राज कानून लागू हुआ तो लगा कि विकास की योजनाओं में स्थानीय भागीदारी लोगों की किस्मत बदलेगी। लेकिन अब भी ऊपर से भ्रष्टाचार की उंगली पकड़ कर उतरा हुआ मुलायम सिक्का जब किसी मुखिया की हथेली पर गिरता है तो उसे भी ऊपर की तरफ खींच लेता है। हालांकि इस शिकायत के अपवाद हैं और वही भरोसा दिलाते हैं कि ये सूरत बदलेगी। लेकिन जब तक वो बदलती नहीं, मौजूदा सूरत को पहचानना जरूरी है।

रामगोपाल जाट

07 मार्च 2009

भ्रष्टाचार की दुनिया

भ्रष्टाचार की दुनिया
अपने चारों ओर नजर घुमाकर देखिए स्थिति कितनी विकराल हो चुकी है। भ्रष्टाचार अब एक सामान्य-सी लगने वाली बात है। अब यह हमारी व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। इसके विरोध में बात करना भी बेमानी लगती है। कहने का तात्पर्य है कि अब हमने इसे स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही दूसरी विशेष बात है कि अब छोटी-छोटी बातों के लिए लड़ाई सड़कों पर पहुंच रही है जिसमें पुलिस मूकदर्शक होती है। राजनेताओं को राज्य की नीति से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं। राजनीति में गुंडे-बदमाशों-मवालियों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है। उनके लिए रामराज अर्थहीन है। जो जैसा चाहता है वो वैसा ही करवा सकता है। वोट के खातिर राजधर्म भीड़ के पैरों तले रौंद दिया जाता है। प्रजातंत्र भीड़तंत्र में तबदील हो चुका है। हर एक शासक बनने के चक्कर में है, फिर चाहे रास्तें कोई भी हो। हर कोई शासन से कुछ न कुछ लेने के फिराक में घात लगाए बैठा मिल जाएगा। राष्ट्र को कुछ देने का सवाल ही नहीं। देश के लिए त्याग करना अब सपना बन चुका है। किसी भी व्यवस्था को चलाने के लिए कुछ नियम बनाये जाते हैं और उनका पालन अति आवश्यक होता है। परंतु आज नियमों को तोड़ना एक फैशन बन चुका है। ऐसा करने वाले रातोंरात प्रसिद्धि पा जाते हैं। और दुर्भाग्यवश वो आज हमारे जननायक भी बन बैठे हैं। गलत रास्तों पर चलना बहुत आसान हो चुका है। और पकड़े जाने पर उससे बचना तो और भी आसान है। आम जनता देखकर चुप तो रह जाती है मगर फिर यही बात उसके दिल में आग बनकर उसे जलाती रहती है। कुछ एक इसे देखकर स्वयं भी गलत काम के लिए प्रेरित हो जाते हैं। ऊपर से यह जानते हुए भी कि सब को सब कुछ नहीं मिल सकता। हमने सबके अंदर महत्वकांक्षाएं इतनी भर दी हैं, बाजार ने इच्छाएं इतनी बढ़ा दी हैं, कृत्रिम भूख इतनी पैदा कर दी गई है कि हर आदमी हर कुछ चाहता है। क्या यह संभव है? नहीं। एक तरफ महलों के अंदर जीने वाले रईस, रातोंरात नामी बन रहे सितारे, तिकड़म द्वारा करोड़ों कमाते व्यवसायी, भाषा-धर्म-क्षेत्र की भावनाओं पर राजनीति की रोटी सेंकते राजनेता, दूसरी तरफ एक वक्त की रोटी को तरसता आम गरीब परिवार। असमानता इतनी बढ़ गयी है कि संभालना मुश्किल होता जा रहा है। आज की मुक्त अर्थव्यवस्था, खुला बाजार, अति आधुनिक जीवन, प्रतिस्पर्द्धात्मक युग चाहे जो नाम दे दें और चाहे जो कर लें, सफल होते तो गिने-चुने ही हैं। परंतु आग तो सब के दिल में लगा दी गई है। सभी को सब कुछ चाहिए। क्या यह संभव है? नहीं। हम तो यह भी भूल गए कि प्रकृति की बनाई हुई व्यवस्था में भी सब कुछ सबके पास नहीं है। संतुष्टि की भावना को दबा दिया गया। 'संतोष परम सुखम' का ज्ञान बांटने वाले सत्संग भी अपने आप में व्यापार बन गए। भजन गाने वाले भी करोड़ों में खेलने लगे। धर्म का उद्देश्य समाज में व्यवस्था बनाने की जगह अपनी धाक जमाना व भीड़ बढ़ाना हो गया। हर आदमी दौड़ रहा है। उसे रोक कर समझाने वाला कोई नहीं। उसे सपनों की दुनिया में ले जाया गया, बेवकूफ बनाने के लिए। बेवकूफ बनाने वाला स्वयं को बहुत समझदार समझ रहा है। मगर वो भी स्वयं कहीं न कहीं किसी न किसी का शिकार है। अंततः एक ऐसा कालचक्र, जिसके चक्रव्यूह में फंसकर एक ऐसा बवंडर बन चुका है जो पूरी सभ्यता व संस्कृति को नष्ट कर के ही दम लेगा। उपरोक्त बातों का ही नतीजा है जो आम जनता विद्रोह पर उतर आयी है और वो सब कुछ करने लगी है जो लेख के प्रारंभ में दिखाया गया। सवाल यहां सही और गलत का नहीं है। अभी तो यह शुरुआत है। वो दिन दूर नहीं जब लोग राजनेताओं का सड़कों पर चलना मुश्किल कर देंगे। घर के अंदर भी पुलिस उन्हें बचा नहीं पायेगी। चमचमाते फिल्मी सितारों को और रईस के घरों को लूट लिया जायेगा। आग इतनी फैल जायेगी कि सारी कानून व्यवस्थाएं ठप हो जायेंगी। यह कोई अच्छी बात नहीं होगी, न ही इस अव्यवस्था का स्तुतिगान मैं यहां कर रहा हूं। मगर फिर जो दिख रहा है उससे आंखें मूंदना भी ठीक नहीं। वैसे भी हमने जो किया है वही तो हमें लौटकर मिलेगा। लेकिन इसी घटनाक्रम को एक नयी दृष्टि से विश्लेषित करें तो पायेंगे कि असल में प्रकृति के इस नियम का पूरी तरह पालन हो रहा है कि नये के आने के पहले पुराने का नष्ट होना आवश्यक है। पुराने के गये बिना नये का आगमन संभव नहीं। पुरानी पत्तियों के जाने के बाद ही पेड़ों पर नये अंकुर फूटते हैं। विनाश के बाद ही नया सृजन होता है। ठीक इसी तरह उपरोक्त घटनाएं हमारे वर्तमान व्यवस्था के समाप्त होने का एक संकेत है। यह इस बात का प्रतीक है कि वर्तमान को अब जाना होगा। वो जर्जर हो चुका है। सड़-गल रहा है। यह प्रदर्शन करती, आग लगाती, अनियंत्रित भीड़ अपने अंदर से एक नये व्यवस्था को जन्म देगी जो आज की इस अस्तव्यस्तता से छुटकारा दिलायेगी। और फिर इतना यकीन है कि अंत में जो होगा अच्छा ही होगा। इसकी परिणति नये समाज की नयी व्यवस्था के रूप में होगी।
लेखन रामगोपाल जाट 'कसुम्बी 'द्वारा

06 मार्च 2009

प्राणायाम और उसका प्रभाव


प्राणायाम और उसका प्रभाव
योग न सिर्फ मनुष्य की तंदुरुस्ती के लिए सही होता है, बल्कि यह मानसिक विकास में भी काफी सहायक होता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत सहित दुनियाभर में योग का काफी प्रचार-प्रसार हुआ है। यही कारण है कि जन-जन में योग के प्रति रूचि बढी है। जिस विद्या को हम भूलते जा रहे हैं, वह फिर लोगों में धीरे-धीरे अपनी पैठ बनाता जा रहा है।योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम एक ऐसी योग साधना है, जिसका मानव जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पडता है। प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी। प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है।पातंजलि योग सूत्र 249 के अनुसार आसन के सिध्द हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति के अवरोध हो जाने का नाम 'प्राणायाम' है।'प्राणायाम' शब्द दो शब्दों प्राण+आयाम से मिलकर बना है। प्राण का साधारण अर्थ जीवन शक्ति और आयाम का अर्थ विस्तार अर्थात् जीवन शक्ति का विस्तार। प्राण शब्द के साथ प्राय: 'वायु' को जोड़ा जाता है, तब इसका अर्थ नाक द्वारा श्वास लेकर फेफड़ों में फैलाना तथा उसके ऑक्सीजन अंश को रक्त के माध्यम से शरीर के अंग-प्रत्यंगों में पहुंचाना होता है।यह प्रक्रिया इतनी महत्वपूर्ण है कि यदि यह कुछ क्षणों के लिए भी रुक जाए तो जीवन का अंत हो जाएगा। सृष्टि में जो चेतनता दिखाई दे रही है, उसका मूल कारण 'प्राण' ही है। इस प्रकार प्राणायाम का प्रयोजन पूरा होता है।प्राणायाम की मुख्य पध्दति में मुख्य रूप से तीन चरण हैं- श्वास को भरना (पूरक), श्वास को रोकना (कुंभक), श्वास को निकालना (रेचक)। कुंभक दो प्रकार का है, श्वास को अंदर भरकर रोकना जिसको अंत: कुंभक कहा जाता है। दूसरा श्वास को बाहर निकालकर रोकना, जिसको बाह्यकुंभक कहा जाता है।प्राण और अपान वायु के मिलने को 'प्राणायाम' कहते हैं। प्राणायाम कहने से रेचक पूरक और कुंभक की क्रिया समझी जाती है। हमारे शरीर में पांच महाप्राण तथा लघु प्राण हैं, जिनका वर्णन संक्षेप में निम्न प्रकार है-1। प्राण: इसका निवास हृदय में है और इसके साथ इसका लघु प्राण 'नाग' भी वहीं रहता है। प्राण के द्वारा श्वासों, प्रश्वास, आहार आदि का खींचना, बल, संचार तथा शब्दोचार आदि क्रियाएं होती हैं। 'नाग' जो इसका उपप्राण है, उसके द्वारा हिचकी, डकार तथा गुदावायु की क्रिया होती है।2। अपान: यह महाप्राण गुदा और जननेन्द्रिय के बीच मूलाधार के निकट स्थित है। इसके द्वारा हमारे शरीर के सभी मलों का विसर्जन होता है तथा इसके सहयोगी लघुप्राण 'कुर्मं' के द्वारा पलकों का झपकना और नेत्रों संबंधी अन्य क्रियाएं होती हैं।3। समान: इस महाप्राण का निवास स्थान उदर में नाभि के नीचे है। शरीर में पाचक रसों का उत्पादन तथा वितरण इसी महाप्राण के द्वारा होता है। इसका उपप्राण 'कृकल' भूख-प्यास आदि क्रियाओं का सम्पादन करता है।4। उदान प्राण का निवास कण्ठ है। यह शरीर को उठाए रखने, गिरने से बचाने का कार्य करता है अर्थात शरीर का संतुलन पर नियंत्रण बनाए रखना इसी का कार्य है। उदान प्राण के साथ 'देवदत्त' लघुप्राण जम्भाई और अंगड़ाई आदि क्रियाओं को कराता है।5। व्यान: इस महाप्राण का स्थान मस्तिष्क का मध्य भाग है। यह पूरे शरीर में व्याप्त है। अत: अन्य चारों प्राणों और पूरे शरीर पर नियंत्रण रखना इसका कार्य है। अन्तर्मन की स्वसंचालित गतिविधियां इसी के द्वारा पूरी होती हैं। इसका लघुप्राण 'धनंजय' मृत्यु के पश्चात शरीर को गलाने, सड़ाने का कार्य करता है।प्राणायाम के द्वारा शरीर और मन पर पड़ने वाला प्रभाव महत्व तथा प्राणायाम के अभ्यास से होने वाले लाभों को भारतीय ऋषियों ने हजारों साल पहले अनुभव कर लिया था। प्राणायाम के द्वारा हमें शारीरिक तथा मानसिक समता प्राप्त हो जाती है और शरीर के सभी मल तथा मन के विकार भस्म हो जाते हैं। प्राणायाम के अभ्यास से मनुष्य अपने रोगों को नष्ट करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। मनुष्य की बहत्तर हजार नस-नाड़ियों में शुध्द रक्त का संचार होने लगता है, जो उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक है।यूं तो प्राणायाम अनेक प्रकार के हैं, किन्तु यहां हम उन्हीं प्राणायाम की चर्चा करेंगे, जिन्हें ग्रहस्थी, बाल, युवा, वृध्द, पुरुष एवं महिलाएं सुविधापूर्वक करके लाभ प्राप्त कर सकें।प्राणायाम करने वाले को कुछ सावधानियों के साथ नियमों का पालन करना आवश्यक है-सामान्य नियम1। प्राणायाम करने का सबसे उत्तम समय प्रात:काल शौचादि से निवृत्त होने के पश्चात है। सायंकाल में की कुछ हल्के प्राणायाम किए जा सकते हैं।2. स्थान स्वच्छ, शांत और हवादार होना चाहिए। 3. पद्मासन, सिध्दासन अथवा सुखासन पर बैठकर प्राणायाम करना चाहिए।4. प्राणायाम करने वाले साधक का आहार-विहार संतुलित, सात्विक एवं पवित्र होना चाहिए।5.प्राणायाम का अभ्यास श्रध्दा, प्रेम, धैर्य और सजगता के साथ नियमित करना चाहिए।6. किसी रोग की स्थिति में तथा गर्भवती महिलाओं को वेगयुक्त प्राणायाम नहीं करने चाहिए।7. दमा, उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगियों को कुंभक नहीं करना चाहिए।8. प्रत्येक प्राणायाम अपनी क्षमतानुसार करें, किसी स्तर पर किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव न हो अथवा श्वास घुटने न पाए।9. प्राणायाम करने वाले साधक के वस्त्र मौसम के अनुकूल कम से कम तथा ढीले होने चाहिए।10 हर एक प्राणायाम करने के पश्चात एक दो गहरे लंबे सांस भरकर धीरे-धीरे निष्कासित करके श्वास को विश्राम देना चाहिए।उखड़े श्वास में कभी भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।